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जिस्म सन्दल,कारनामे हैं मगर अंगार से। / राजमूर्ति ‘सौरभ’
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जिस्म सन्दल,कारनामे हैं मगर अंगार से।
आप की सूरत अलग है आपके किरदार से।
आपके सारे मुखौटे अब पुराने हो गये,
और कुछ चेह्रे नये ले आइए बाज़ार से।
ख़ाक हो जाएगी बस्ती,क्या महल क्या झोपड़ी,
दूर रखिए आग को,बारूद के अम्बार से।
अपना चेह्रा साफ़ करिए,आइने मत तोड़िए,
हल न होंगे मस्अले,यूँ नफ़रतो-तक़रार से।
दुम अभी तक हिल रही हैं,हाथ अब भी हैं जुड़े,
आप शायद आ रहे हैं लौटकर दरबार से।