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जीभ / प्रमोद धिताल / सरिता तिवारी


पहले तो
नहीं थी इतनी लम्बी!

कैसे हुई
इतनी लम्बी
पतली
और नुकीली?

छुरी जैसी?

आपके आदेश के बाद
मौन ही रहना था
आपकी आज्ञा के बाद
बोलते हुए भी रुकना था
लेकिन क्यों चुप नहीं रहती है यह?
आपको कुछ मालूम है?

निरन्तर
आपकी रेखदेख में भी
आपके शासन में रहते हुए भी
कण्ठ से दाँत की जड़ तक का आयतन लाँघकर
पहुँच चुकी है यह
कचहरी में
थाने में
अड्डे में

जुलुस में
सभा में

पहुँच चुकी है
संसद में

जीव विज्ञानी समेत हैरान हैं
कि बदल चुकी है इसने
रूप
आकार
और ठिकाना !

कितना रंग हीन हुआ है आपका चेहरा?
कहाँ उड़ गई गालों की लाली?
देखने लायक है
आपका भयभीत होकर बड़बड़ाता हुआ दृश्य।

क्या आपको लग रहा है डर?
निहत्थी जीभ से?

लेकिन नहीं रही जीभ अब
केवल एक मौन ज्ञानेन्द्रिय (ज्ञानी इन्द्रिय)

यह तो सत्य है।