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जीवन का जुड़वाँ / सवाईसिंह शेखावत

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नहीं, केवल आग बनने की प्रक्रिया भर नहीं है जीवन
शुष्क तथ्यों के भार से लदा निरा ठोस विप्लव
हम स्वागत करते हैं आते हुये सूर्य का दस्तक देती भोर का
लेकिन जीवन की खिड़की में बेहद ज़रुरी है चाँद का अक्स भी
वह मीठी ठंडक जो रचती है लहू में कुछ चमकता हुआ-सा
जिसमें शामिल चाँद का होना,उसका धीरज,उसकी तिरछी मुस्कान
वह कोई भी जो दोनों में किसी एक के होने की तरफ़दारी करता है
वह जन्मजात हत्यारा है उसे माफ़ नहीं किया जाना चाहिए
मैं जो जीवन का जुड़वाँ हूँ दर्प आकाश का फल लदे पेड़ की विनय
जीवन की शर्त पर मैंने ही समझौता किया था, वह मेरा साहस था
हद से बेहद में जाने और जी​​वन को अनवरत रचते चले जाने का
जी उसीने सिरजी यह समूची सचराचर कौतुकमयी सृष्टि
धरती, सूरज, आकाश और पानी ने मिल कर रची यह जीवन-निधि
रगों में दौड़ता सुर्ख लहू तुम्हें देगा जीवन- तन्तुओं के स्पर्श का पता
उस रिश्ते का पता जो जीवन कोशिकाओं में सुरक्षित है प्रार्थना की तरह
पंखुड़ियों पर हस्ताक्षर करता सूर्य झुक रहा है पराग के भार से
ओ तुनक मिजाज दोस्तों , हमें कुछ तो सीखा चाहिए भीगी धरा से
आँधी के थपेड़े झेलते दरख्तों और मझ दोपहर मुस्कराते गुलमुहर से
तलाश है मुझे सहस्राब्दियों की यात्रा कर पृथ्वी पर पहुँचे उस प्रकाश की
जो नियति की पहेली सुलझा जुदा करता है अंधकार और प्रकाश को।