Last modified on 25 जुलाई 2016, at 07:08

जीवन की महक हो तुम / बोधिसत्व

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:08, 25 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बोधिसत्व |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कभी धनिया, कभी हल्दी, कभी अचार की महक
कभी दाल में जीरे के छौकन बघार की महक
कभी चन्दन कभी अगरू कभी गुल बहार की महक
कभी तरबूजे कभी केवड़े हर कभी सिंगार की महक
कभी जली रोटी कभी सिरके, कभी कच्चे दूध की महक
कभी इतर, कभी फुलेल, कभी आबसार की महक
कभी साँसों, कभी पलकों, कभी मेंहदी की महक
कभी नेलपालिश, कभी लाली, कभी पाउडर की महक
कभी जूड़े में फँसे सुफ़ेद लाल नीले फूलों की महक
तुमसे आती इन महकों में है जीवन की महक
इस महक से मैं जीता हूँ चहक-चहक।