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जीवन के पुर्नेन्द्र / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

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छुप छुप कर मत घात किया कर ।
मिलकर खुलकर बात किया कर ।

चिर अतृप्त सा मैं मरूथल हूँ
 तू रस की बरसात किया कर ।

युग की दिशा दशा क्यों भूला
चेत, न इतनी रात किया कर ।

करना है जो कर दिखला दे,
सपनों की न बरात किया कर ।

नीरसता का संचय मत कर,
रंगा रंग जमात किया कर ।

कर दे दुख की साँझ विसर्जित,
सर्जित सुखद प्रभात किया कर ।

जर्जर सा है नीड़ हमारा,
अब मत उल्कापात किया कर ।

ढूँढ रहा क्यों यहाँ तृप्ति को,
निर्मित स्वयं प्रताप किया कर ।

जीवन के पूर्णेन्दु ! मनस में,
मधुर चाँदनी रात किया कर ।