भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन छलना है / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सिर पटका
जडीभूत थी शिला
न वह टूटी
न ही कभी पिंघली
मस्तक फूटा
प्रयास खेत रहे
अभिमन्यु -से
जीवन छलना है
अँधेरे रास्ते
अन्धों के संग -संग
होकर मौन
पीछे ही चलना है
हिम- सा गलना है।