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जीवन तो केवल प्रवाह है / गुलाब खंडेलवाल

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जीवन तो केवल प्रवाह है
 
सलिल नहीं है यह न लहर है
झंझा नहीं, न बुदबुद भर है
इन सबसे जो हुई मुखर है
एक सतत अव्यक्त चाह है
 
यह जो 'मैं' बन मुझसे चिपटा 
यह भी एक वसन है लिपटा  
इस छोटे से तन में सिमटा
महासिंधु अविगत, अथाह है

जीवन तो केवल प्रवाह है