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जीवन में बढती खाइयों के बीच / विजय सिंह नाहटा

जीवन में बढती खाइयों के बीच
सन्धि रेखाओं पर
धर दूंगा चराग़ उम्मीद का।
जीवन कें असंगत पैमानों
के दरमियाँ
हर थरथराती जगह
तनिक भर दूंगा
निष्कलुष प्रेम।
जहाँ जिस छोर
पसरा हुआ निर्वात
अनन्त तक
उन शून्य प्रतीतियों के
मिलन स्थल पर
सब खोखली जगहों में
पसर जाएगी
घर कर लेगी
मेरी कविता।