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जीवन में मेला नहीं है / राजकिशोर सिंह

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लोग कहते हैं
श्रीमान आप, आप जैसे
अब लगते नहीं हैं
पहले जहाँ-तहाँ दीऽते थे
अब दीऽते नहीं हैं
जहाँ-तहाँ रुकते थे
अब रुकते नहीं हैं
गजब मुस्कुराहट थी आपके मुऽड़े की
अब चेहरे की गमगीनी से
पता चलता है
आपके दुऽड़े का
कापफी सुनने के बाद
मैं मूक रहा
मैं चुप रहा
तब
मेरे चेहरे के गम
मेरी आँऽों के नम
कहा मन ही मन
बचपन की अब वह बेला नहीं है
मेरा जीवन अब अकेला नहीं है
अब कमर झुकी है
हाथों में लाठी है
जो मेरा सहपाठी है
आँऽों पर चश्मे

मुँह में कृत्रिम दाँत
कानों में सुनने के लिए मशीन
कहीं भी हो कैसे भी हो
ढोना पड़ता है
रात में दवा ऽाकर सोना पड़ता है
बचपन की अब वह बेला नहीं है
मेरा जीवन अब अकेला नहीं है
बचपन की शक्ल बदल गयी
जवानी में अक्ल बदल गयी
कहाँ वह बचपन कहाँ यह जवानी
अब तो हँसना रोना सब नादानी
अब
तन का मन को सहयोग नहीं है
जीवन में सुऽ का उपभोग नहीं है
रहता हूँ तन्हा-तन्हा सा
होली दिवाली में भी
महसूसता हूँ शुष्कता
हरियाली में भी
अब क्या करूँ
मेरे जीवन में मेला नहीं है
मेरा जीवन अब अकेला नहीं है
बचपन की अब बेला नहीं है।