Last modified on 26 सितम्बर 2019, at 15:44

जीवन शून्य है / अरुण चन्द्र रॉय

सैकड़ों बार कहे जाने के बाद भी
हम दुहराते हैं कि
जीवन शून्य है
और आश्वस्त होते हैं
माया मोह के बन्धन से दूर हैं हम

जितनी बार दुहराते हैं शून्य
शून्य का धागा
मनोकामना के धागे की तरह
मज़बूती से लिपट जाता है
हमारे चारो ओर
कुछ आशाओं के संग

शून्य की यह डोर
चलती रहती है हमारे साथ
साँसों की डोर के समानान्तर
और कहती है शून्य नहीं है जीवन