भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन है टफ़ / रविशंकर मिश्र

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:54, 21 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रविशंकर मिश्र |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

धुआँ-धुआँ शहर हुआ
जीवन है टफ़
बिगड़ गये हैं तीनों
वात पित्त कफ़

खेद लिये बैठी है
हर जगह रुकावट
बड़े -बड़े नगरों की
अजब है लिखावट
समझ नहीं आता
है फ़ेयर या रफ़

साबुनदानी जैसे
हैं अपने दड़बे
गली में समाये हैं
कस्बे के कस्बे
सच्चाई रोटी की
खेल रही ब्लफ़

लकदक बाजार सजे
बिकतीं सुविधाएँ
ढूँढ़ते रहो सुख है
बाएँ या दाएँ
अपनापन दुर्लभ है
कहूँ बाहलफ़