Last modified on 15 जून 2017, at 13:17

जीवन - 31/ रीना दे / शिव किशोर तिवारी

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:17, 15 जून 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रीना दे |अनुवादक=शिव किशोर तिवार...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

उछाहों भरा हर सब्ज़ क़दम
पैरों के नीचे तपता हुआ रास्ता है,
यातना के बीज जो अपने हाथों बोए,
पौध कच्ची है उनकी,
आज जो बच्चों का खेल है, वह
समय के साथ दुस्सह दुःख बनता है।

पहले लिखे किसी पृष्ठ के अन्तिम अक्षर
उठकर नाचने लगते हैं,
अभी जो लिख रही हूं वे शब्द
शिक्षाप्रद बनने की कोशिश में हैं।

नयापन कहाँ है?
पुराने के ही नए रूप का खेल है।
इस बार परिपक्व हो आएगा वह
कभी जिसे नज़रअन्दाज़ किया था।

मूल असमिया से अनुवाद : शिव किशोर तिवारी

लीजिए, अब पढ़िए, मूल असमिया में यही कविता
জীৱন ৩১

উলাহৰ প্ৰতিটো সেউজীয়া খোজ
ভৰিৰ তলত এটি তপত বাট,
যাতনাৰ কণ-কঁঠিয়া নিজ হাতে ৰোৱা
অপৈনত বীজ।
'একালৰ শিশু লীলা
একালৰ নিকাৰ',
কেওখিলা পৃষ্ঠাৰ শেষলেখাবোৰে
উঠি আহি নাচি-বাগি আছে,
এতিয়া যি লিখি আছো সেইবোৰে
এশিকনি দিবলৈ 'গাই বাই চাইছে'।
নতুন ক'ত ?
পুৰণিৰে নতুন ৰূপৰ খেলা,
এতিয়াৰ খেল পৈণত,
একালত কৰিছিলো হেলা।