http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A5%A6_%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%B0_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%AA_/_%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AF&feed=atom&action=historyजी० शंकर कुरुप / परिचय - अवतरण इतिहास2024-03-28T15:12:15Zविकि पर उपलब्ध इस पृष्ठ का अवतरण इतिहासMediaWiki 1.24.1http://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A5%A6_%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%B0_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%AA_/_%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AF&diff=46744&oldid=prevPratishtha 23 जून 2009 को 13:12 बजे2009-06-23T13:12:49Z<p></p>
<table class='diff diff-contentalign-left'>
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<tr><td colspan="2"> </td><td class='diff-marker'>+</td><td style="color:black; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #a3d3ff; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div><ins class="diffchange diffchange-inline">}}</ins>महाकवि के नाम से मशहूर चर्चित मलयाली कवि जी शंकर कुरुप भारतीय साहित्य के शीर्ष पुरस्कार साहित्य अकादमी से सम्मानित होने वाले पहले रचनाकार थे और उनके साहित्य में प्राचीन एवं आधुनिक विचारों का अद्भुत मेल दिखाई देता है। कुरुप के साहित्य में प्राचीन भारतीय मूल्यों और विचारों का सम्मान दिखाई देता है। समीक्षकों के अनुसार इसका कारण संस्कृत साहित्य में उनकी रुचि थी।  </div></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"></td></tr>
<tr><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>दरअसल बचपन में पढी संस्कृति रचनाओं से ही उन्हें साहित्य का चस्का लगा। बाद में उनका झुकाव अंगे्रजी साहित्य की ओर हुआ और उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के महत्व को समझते हुए आधुनिक युगबोध को भी अपनाया।  </div></td><td class='diff-marker'> </td><td style="background-color: #f9f9f9; color: #333333; font-size: 88%; border-style: solid; border-width: 1px 1px 1px 4px; border-radius: 0.33em; border-color: #e6e6e6; vertical-align: top; white-space: pre-wrap;"><div>दरअसल बचपन में पढी संस्कृति रचनाओं से ही उन्हें साहित्य का चस्का लगा। बाद में उनका झुकाव अंगे्रजी साहित्य की ओर हुआ और उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के महत्व को समझते हुए आधुनिक युगबोध को भी अपनाया।  </div></td></tr>
</table>Pratishthahttp://kavitakosh.org/kk/index.php?title=%E0%A4%9C%E0%A5%80%E0%A5%A6_%E0%A4%B6%E0%A4%82%E0%A4%95%E0%A4%B0_%E0%A4%95%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%81%E0%A4%AA_/_%E0%A4%AA%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%9A%E0%A4%AF&diff=45611&oldid=prevअनिल जनविजय: नया पृष्ठ: महाकवि के नाम से मशहूर चर्चित मलयाली कवि जी शंकर कुरुप भारतीय साह...2009-06-02T19:36:52Z<p>नया पृष्ठ: महाकवि के नाम से मशहूर चर्चित मलयाली कवि जी शंकर कुरुप भारतीय साह...</p>
<p><b>नया पृष्ठ</b></p><div>महाकवि के नाम से मशहूर चर्चित मलयाली कवि जी शंकर कुरुप भारतीय साहित्य के शीर्ष पुरस्कार साहित्य अकादमी से सम्मानित होने वाले पहले रचनाकार थे और उनके साहित्य में प्राचीन एवं आधुनिक विचारों का अद्भुत मेल दिखाई देता है। कुरुप के साहित्य में प्राचीन भारतीय मूल्यों और विचारों का सम्मान दिखाई देता है। समीक्षकों के अनुसार इसका कारण संस्कृत साहित्य में उनकी रुचि थी। <br />
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दरअसल बचपन में पढी संस्कृति रचनाओं से ही उन्हें साहित्य का चस्का लगा। बाद में उनका झुकाव अंगे्रजी साहित्य की ओर हुआ और उन्होंने वैज्ञानिक दृष्टिकोण के महत्व को समझते हुए आधुनिक युगबोध को भी अपनाया। <br />
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मलयाली भाषा के इस विख्यात कवि का जन्म तीन जून 1901 को केरल के उजाड गांव के छोटे से परिवार में हुआ। पारंपरिक शिक्षा पद्धति के अनुरूप तीन वर्ष की आयु से ही उनका अक्षर ज्ञान शुरू हो गया और आठ वर्ष की आयु तक आते आते उन्होंने अमरकोष, श्रीरामोदंतम जैसे ग्रंथ ही नहीं महाकवि कालिदास के रघुवंश महाकाव्य के कई श्लोक कंठस्थ कर लिए थे। पारंपरिक शिक्षा में काव्यों के कंठस्थ होने के साथ ही 11 वर्ष की आयु से जी के भीतर काव्य की धारा फूट पडी। छात्र जीवन में महज 17 वर्ष की आयु में उनका पहला काव्य संग्रह प्रकाशित हुआ। उनके कुल मिलाकर 25 काव्य संग्रह मलयालम में प्रकाशित हुए। <br />
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शिक्षा के बाद 1921 में कुरुप तिरूविलामावाला में माध्यमिक स्कूल में अध्यापक बने। बाद में वह त्रिचूर के समीप सरकारी माध्यमिक अध्यापक प्रशिक्षक केन्द्र में अध्यापक बन गए। इसके बाद वह एरनाकुलम के महाराजा कालेज में मलयालम पंडित बन गए और इसी संस्थान से वह 1956 में प्रोफेसर के पद से सेवानिवृत्त हुए। <br />
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कविताओं और निबंध के अलावा कुरुप ने उमर खैयाम की रूबाइयों का मलयालम में अनुवाद किया। इसके अलावा उन्होंने कालिदास के मेघदूत और रविन्द्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध कृति गीतांजलि का अनुवाद कर अपनी मातृभाषा को समृद्ध किया। समीक्षकों के अनुसार कुरुप के साहित्य में महात्मा गांधी और गुरुदेव टैगोर के राष्ट्रभक्ति और मानवतावाद के विचार स्पष्ट तौर पर दिखाई देते हैं। इसके अलावा उन्होंने प्रकृति के सुंदर चित्रों को अपनी कविताओं के माध्यम से जीवंत किया। <br />
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कुरुप को ओटक्कुषल अर्थात बांसुरी के लिए पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला। उन्हें सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार से भी सम्मानित किया। भारतीय साहित्य में उनके योगदान को देखते हुए सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया। <br />
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उन्होंने पी जे चेरियन की निर्मला फिल्म के लिए गीत भी लिखे। यह गीत संगीत वाली पहली मलयालम फिल्म थी। <br />
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मलयालम के इस शीर्ष कवि का निधन 76 वर्ष की उम्र में दो फरवरी 1978 को हुआ। भारत सरकार ने उनकी याद में 2003 में पांच रुपये मूल्य का स्मारक डाक टिकट जारी किया था।</div>अनिल जनविजय