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जी उमंग से / उर्मिल सत्यभूषण

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जी उमंग से, जी उमंग से
पल प्रतिपल को जी उमंग से
ओ मेरे प्राणों के बुलबुल।
रो मत, रो मत, जी उमंग से
ये गुलाब की नेह पांखुड़ियाँ
वारें तुझ पर मोती लड़ियाँ
फिर कांटों से बिंधकर पगले
से मत, रो मत, गा उमंग से
ओ मेरे लोचन के दीपक।
बुझ मत, बुझ मत, जल उमंग से
कितने दीवाने, परवाने
आये तुझ पर शीश चढ़ाने
उनके नेह का मूल्य चुका तू
बुझ मत, बुझ मत, जल उमंग से
ओ मेरे अधरों की वंशी
गूंगी मत हो बज उमंग से
व्यस्त है जन-जन
त्रस्त है जन-जन
कल पुर्जों सा सूख गया मन
य-रव की रसवन्ती धारा
भर उनमें तू बज उमंग से
ओ मेरे पांवों के नूपुर!
रुक मत, नर्त्तन कर उमंग से
कितना कोलाहल और हलचल
पीने को रह गया हलाहल
ओ रे कलामय, ओ रे सुधामय
अमृत वर्षा कर उमंग से।