जी चाहे उड़ जाऊँ नभ में
मुट्ठी भर लूँ तारों से॥
बूँद बूँद कर तृप्ति नीर
बंट जाये प्यासों में
महक रातरानी की जागे
फिर से सांसों में
रहे बिखरते जुगनू मोती
टूट टूट कर हारों से॥
आशाओं के उड़ते पंछी
को वश में कर लूँ
हाथ बढ़ा सागर की लहरें
बाँहों में भर लूँ
हिम आवास सजा लूँ अपना
दहक रहे अंगारों से॥
सिसक सिसक कर शमा याद की
पिघल पिघल बहती
हवा निशा - श्रवणों में जाने
क्या कहती रहती
मानस वन के फूल तोड़ लूँ
खिलती हुई बहारों से॥
मिलन स्वयं से कठिन बहुत है
कभी न हो पाये
फूल फूल भंवरा बन डोले
यह मन बहकाये
मैल नहीं धुल पाता जल की
दूषित होती धारों से॥