भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जी भर / अर्चना भैंसारे

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:27, 14 जुलाई 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अर्चना भैंसारे |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> मैं चाहती थी …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं चाहती थी जी भर देखना तुम्हें

सोचा, समझ जाओगे
बिना कहे मन की बात
छोटे से छोटा पल
जो बीता तुम्हारे साथ
याद कर किया
लम्बा इंतज़ार

तुम आओ तो बता सकूँ
कि, बुने कुछ सपने तुम्हें लेकर
पर हमेशा मिले तुम हमेशा
किसी न किसी उधेड़बुन में
जुगाड़ करते कुछ न कुछ
और मैं सोचती रही
शायद अब हो जाओ फ़ुर्सत में
तो देख सकूँ
तुम्हें जी भर ।