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"जी हाँ , लिख रहा हूँ / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर
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− | गुम हो जाती हैं | + | गुम हो जाती हैं |
− | चेतना के 'की-बोर्ड' पर वो बस | + | चेतना के 'की-बोर्ड' पर वो बस |
− | दो-चार सेकेंड तक ही | + | दो-चार सेकेंड तक ही |
− | टिकती है .... | + | टिकती है .... |
− | कभी-कभार ही अपनी इस | + | कभी-कभार ही अपनी इस |
− | लिखावट को कागज़ पर | + | लिखावट को कागज़ पर |
− | नोट कर पता हूँ | + | नोट कर पता हूँ |
− | स्पन्दनशील संवेदन की | + | स्पन्दनशील संवेदन की |
− | क्षण-भंगुर लड़ियाँ | + | क्षण-भंगुर लड़ियाँ |
− | सहेजकर उन्हें और तक | + | सहेजकर उन्हें और तक |
− | पहुँचाना ! | + | पहुँचाना ! |
− | बाप रे , कितना मुश्किल है ! | + | बाप रे , कितना मुश्किल है ! |
− | आप तो 'फोर-फिगर' मासिक - | + | आप तो 'फोर-फिगर' मासिक - |
− | वेतन वाले उच्च-अधिकारी ठहरे, | + | वेतन वाले उच्च-अधिकारी ठहरे, |
− | मन-ही-मन तो हसोंगे ही, | + | मन-ही-मन तो हसोंगे ही, |
− | की भला यह भी कोई | + | की भला यह भी कोई |
− | काम हुआ , की अनाप- | + | काम हुआ , की अनाप- |
− | शनाप ख़यालों की | + | शनाप ख़यालों की |
− | महीन लफ्फाजी ही | + | महीन लफ्फाजी ही |
− | करता चले कोई - | + | करता चले कोई - |
− | यह भी कोई काम हुआ भला !< | + | यह भी कोई काम हुआ भला ! |
+ | </poem> |
12:08, 25 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
जी हाँ, लिख रहा हूँ ...
बहुत कुछ ! बहोत बहोत !!
ढेर ढेर सा लिख रहा हूँ !
मगर , आप उसे पढ़ नहीं
पाओगे ... देख नहीं सकोगे
उसे आप !
दरअसल बात यह है कि
इन दिनों अपनी लिखावट
आप भी मैं कहॉ पढ़ पाता हूँ
नियोन-राड पर उभरती पंक्तियों की
तरह वो अगले ही क्षण
गुम हो जाती हैं
चेतना के 'की-बोर्ड' पर वो बस
दो-चार सेकेंड तक ही
टिकती है ....
कभी-कभार ही अपनी इस
लिखावट को कागज़ पर
नोट कर पता हूँ
स्पन्दनशील संवेदन की
क्षण-भंगुर लड़ियाँ
सहेजकर उन्हें और तक
पहुँचाना !
बाप रे , कितना मुश्किल है !
आप तो 'फोर-फिगर' मासिक -
वेतन वाले उच्च-अधिकारी ठहरे,
मन-ही-मन तो हसोंगे ही,
की भला यह भी कोई
काम हुआ , की अनाप-
शनाप ख़यालों की
महीन लफ्फाजी ही
करता चले कोई -
यह भी कोई काम हुआ भला !