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"जी हाँ , लिख रहा हूँ / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

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आप तो 'फोर-फिगर' मासिक -
कभी-कभार ही अपनी इस<br>
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लिखावट को कागज़ पर<br>
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नोट कर पता हूँ<br>
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स्पन्दनशील संवेदन की<br>
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क्षण-भंगुर लड़ियाँ<br>
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शनाप ख़यालों की
सहेजकर उन्हें और तक<br>
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महीन लफ्फाजी ही
पहुँचाना !<br>
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बाप रे , कितना मुश्किल है !<br>
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यह भी कोई काम हुआ भला !
आप तो 'फोर-फिगर' मासिक -<br>
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यह भी कोई काम हुआ भला !<br><br>
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12:08, 25 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण

जी हाँ, लिख रहा हूँ ...
बहुत कुछ ! बहोत बहोत !!
ढेर ढेर सा लिख रहा हूँ !
मगर , आप उसे पढ़ नहीं
पाओगे ... देख नहीं सकोगे
उसे आप !

दरअसल बात यह है कि
इन दिनों अपनी लिखावट
आप भी मैं कहॉ पढ़ पाता हूँ
नियोन-राड पर उभरती पंक्तियों की
तरह वो अगले ही क्षण
गुम हो जाती हैं
चेतना के 'की-बोर्ड' पर वो बस
दो-चार सेकेंड तक ही
टिकती है ....
कभी-कभार ही अपनी इस
लिखावट को कागज़ पर
नोट कर पता हूँ
स्पन्दनशील संवेदन की
क्षण-भंगुर लड़ियाँ
सहेजकर उन्हें और तक
पहुँचाना !
बाप रे , कितना मुश्किल है !
आप तो 'फोर-फिगर' मासिक -
वेतन वाले उच्च-अधिकारी ठहरे,
मन-ही-मन तो हसोंगे ही,
की भला यह भी कोई
काम हुआ , की अनाप-
शनाप ख़यालों की
महीन लफ्फाजी ही
करता चले कोई -
यह भी कोई काम हुआ भला !