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जी हाँ , लिख रहा हूँ / नागार्जुन

84 bytes removed, 06:35, 25 अक्टूबर 2009
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|रचनाकार=नागार्जुन
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{{KKCatKavita‎}}<poem>जी हाँ, लिख रहा हूँ ...<br>बहुत कुछ ! बहोत बहोत !!<br>ढ़ेर ढ़ेर सा लिख रहा हूँ !<br>मगर , आप उसे पढ़ नहीं<br>पाओगे ... देख नहीं सकोगे<br>उसे आप !<br><br>
दरअसल बात यह है कि<br>इन दिनों अपनी लिखावट<br>आप भी मैं कहॉ पढ़ पाता हूँ<br>नियोन-राड पर उभरती पंक्तियों की<br>तरह वो अगले कि क्षण<br>गुम हो जाती हैं<br>चेतना के 'की-बोर्ड' पर वो बस<br>दो-चार सेकेंड तक ही<br>टिकती है ....<br>कभी-कभार ही अपनी इस<br>लिखावट को कागज़ पर<br>नोट कर पता हूँ<br>
स्पन्दनशील संवेदन की<br>
क्षण-भंगुर लड़ियाँ<br>
सहेजकर उन्हें और तक<br>
पहुँचाना !<br>
बाप रे , कितना मुश्किल है !<br>आप तो 'फोर-फिगर' मासिक -<br>वेतन वाले उच्च-अधिकारी ठहरे,<br>मन-ही-मन तो हसोंगे ही,<br>की भला यह भी कोई<br>काम हुआ , की अनाप-<br>शनाप ख़यालों की<br>महीन लफ्फाजी ही<br>करता चले कोई -<br>यह भी कोई काम हुआ भला !<br><br/poem>
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