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जी हो पाँच बधावा म्हारा यहाँ आविया / निमाड़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जी हो पाँच बधावा म्हारा यहाँ आविया,
पाँचई की नवी नवी रीत।
जी हो, नरवरगढ़ को ऊदो चूड़ो नऽ पोचयो सांवळो।
चूड़ीला पर उग्यों सूर्या भान महाराज।
जी हो, पहिलो बधावो म्हारा यहाँ आवियो।
भेज्यो म्हारा ससुराजी द्वार,
जी हो, ससुराजी रंग सु बधाविया,
सासु नारेळ भरया थाळ महाराज,
जी हो दूसरो बधावो म्हारा यहाँ आवियो।
भेज्यो म्हारा पिताजी द्वार,
जी हो पिताजी रंग सु बधाविया,
माया मोतियन भरया थाळ महाराज,
जी हो तीसरो बधावो म्हारा यहाँ आवियो।
भेज्यो ते जेठजी द्वार,
जी हो, जेठजी रंग सु बधाविया,
जेठाणी न लियो पगरण सार महाराज,
जी हो, चौथो बधावो म्हारा यहाँ आवियो।
भेज्यो म्हारा बीराजी द्वार,
जी हो, बीराजी रंग सु बधाविया,
भावज न लियो घूँघट सार,
जी हो, पांचवों बधावो म्हारा यहाँ आवियो।
भेज्यो म्हारी धनकेरी कूख,
जी हो इनी कूख हीरा रत्न नीबज्या,
जे को ते पगरण आरंभियो।