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जुड़वाँ बच्चे बारिश के / चंद्रभूषण

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नन्हीं झींसियों से नम

पहली बारिश की सुबह

नर्म-नर्म-नर्म


किन-किन कोनों से

उचक-उचक झांकता

बिछल-बिछल नजरों से

भाग-भाग जाता

रंग एक अजनबी


गूंजता कहां-कहां

उलांचता-कुलांचता

सरगम के तारों पर

एक सुर अनोखा


एक रंग बेनाम

एक सुर बेनाम

जुड़वां बच्चे बारिश के

सभी को छकाते हुए

खेल रहे-खेल रहे


खेल रहे-खेल रहे

घुले-घुले धुले-धुले

भीगी हुई माटी की

गंध से मतवाले हम


बादलों को छूती

मीनारों से बेखौफ

बेपरवा सबके सब

दिव्य-भव्य ढांचों से

सभी को छकाते हुए

खेल रहे-खेल रहे


खेल रहे जाते हुए

याद की हदों के पार

उस आदिम बारिश की

आदिम संतानें हम


उड़ रहे फुहारों में

लाखों साल आर-पार

बरस रहे झींसियों में

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