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जुदा वो होते तो हम उन की जुस्तुजू करते / रतन पंडोरवी

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जुदा वो होते तो हम उन की जुस्तुजू करते
अलग नहीं हैं तो फिर किस की आरज़ू करते।

मिला न हम को कभी अर्ज़-ए-हाल का मौक़ा
ज़बाँ न चलती तो आँखों से गुफ़्तुगू करते।

अगर ये जानते हम भी उन्हीं की सूरत हैं
कमाल-ए-शौक़ से अपनी ही जुस्तुजू करते।

जो ख़ाक चाक-ए-जिगर है तो पुर्ज़े पुर्ज़े दिल
जुनूँ के होश में किस किस को हम रफ़ू करते।

दिल-ए-हज़ीं के मकीं तू अगर सदा देता
तिरी तलाश कभी हम न कू-ब-कू करते।

कमाल-ए-जोश-ए-तलब का यही तक़ाज़ा है
हमें वो ढूँडते हम उन की जुस्तुजू करते।

नमाज़-ए-इश्क़ तुम्हारी क़ुबूल हो जाती
अगर शराब से तुम ऐ 'रतन' वज़ू करते।