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जुध दर जुध / मनोज पुरोहित ‘अनंत’

म्है
जद बी सोचूं
भेजै में चालै
जुध दर जुध
म्हारै अर म्हारै सोच में
कदै ई
आडा आवै सिद्धांत
कदै ई मनगत
कदै ई दुनियादारी

म्हैं तो
हरमेस ई हार्यो
कदैई मन आगै
कदैई दुनियां आगै।
आज ठाह पड़ी
भोत दोरो है जीवणों
आपरी सोच साथै
आपरै ई लोगां बिचाळै।