Last modified on 27 अप्रैल 2011, at 21:50

जुमूद / अख़्तर-उल-ईमान

तुम से बेरंगी-ए-हस्ती का गिला करना था
दिल पे अंबार है ख़ूँगश्ता<ref>जिनसे ख़ून टपक रहा है</ref> तमन्नाओं का
आज टूटे हुए तारों का ख़याल आया है
एक मेला है परेशान-सी उम्मीदों का
चंद पज़मुर्दा<ref>मुरझाई हुई, कुम्हलाई हुई</ref> बहारों का ख़याल आया है
पाँव थक-थक के रह जाते हैं मायूसी में
पुरमहन<ref>दुखभरी</ref> राहगुज़ारों का ख़याल आया है
साक़ी-ओ-बादा नहीं जाम-ओ-लब-ए-जू<ref>नदी किनारे</ref> भी नहीं
तुम से कहना था कि अब आँख में आँसू भी नहीं


उर्दू से लिप्यंतर : लीना नियाज

शब्दार्थ
<references/>