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जें गाछोॅ केॅ काटै छै/ अनिरुद्ध प्रसाद विमल

जें गाछोॅ केॅ काटै छै
उ जिनगी भर कानै-कलटै छै
छाया बिन तड़पी-तड़पी केॅ
छाहुर लेली हलफी-हलफी केॅ
कानै-कलपै लोटेॅ छै
जें गाछोॅ के काटै छै ।

नै सोचलकै मरी गेलै
केना कहियै तरी गेलै
अभियो चेतोै, मानवता केॅ तरान दिलावोॅ ।
वृक्ष बचावोॅ, वृक्ष बचावोॅ, वृक्ष बचावोॅ ।

वृक्ष सें ही आदमी के जान छै
वृक्ष नै तेॅ आदमी निष्प्राण छै
वृक्ष सें ही वसुन्धरा के मान छै
वृक्ष नै तेॅ धरती श्मशान छै
पृथ्वी केॅ दाहक अनल में नै जराबोॅ ।
वृक्ष बचावोॅ, वृक्ष बचावोॅ, वृक्ष बचावोॅ ।
 
वृक्ष ही तेॅ बुद्ध ज्ञान के मूल छै
प्रमाण बोधिवृक्ष निरंजना नदी के कूल छै
प्राणवायु वृक्ष सें ही निकली केॅ लहरै
ऐकरा नै समझना आदमी के ही भूल छै
जंगल मंगलदायक छै, ई अभियान चलावोॅ
वृक्ष बचावोॅ, वूक्ष बचावोॅ, वृक्ष बचावोॅ, ।
                
प्राण पवन छै ऐकरे छाहुर में, अमृत छेकै ऐकरे छाया
देव-दनुज दुनिया तलक फैललोॅ छै ऐकरे माया
ऐकरे छाया में बैठी शीतल पशु प्राण सुस्ताया
मस्त मगन हेकरे छाया सें, जड़-चेतन के काया
ई विमल संदेश मनुज सौंसे संसार सुनावोॅ
वृक्ष बचावोॅ, वृक्ष बचावोॅ, वृक्ष बचावोॅ ।