Last modified on 30 सितम्बर 2013, at 12:02

जेकर जड़ ऊपर अकाश में / स्वामी विमलानन्द सरस्वती

Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:02, 30 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्वामी विमलानन्द सरस्वती |अनुवा...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

जेकर जड़ ऊपर अकाश में-
डाढ़ि पुलुंगिया फइलल नीचे,
वेद विदित पत्ता अनमोल,
सघन सुखद छाया में जेकरा-
कायम बा भूगोल खगोल।
ओही ज्ञान-बिरिछा का नीचे,
बोधि ज्ञान के जोति मिलल।
जेकर मनवाँ बुड़की मरलस,
गइल छीर सागर का भीतर-
पियलसि ऊ अमरित क घरिया
ओकरे रतन भेंटाइल।।

आखिर पिपरे बोध करवलस
गउतम जी के डहरि भेंटाइल,
भइल अंजोर हिया मंदिरवा-
लउकि गइल गहगह फुलवारी।।

सुरसति के दरवार बिचितर
ओइसन चट लिखवइया,
सुघर कलमिया कलप बिरिछ के
सातो सागर बनल दोआत,
धरती अइसन कागज लमहर
तबहूँ ना उजिआइल
बोधि बिरिछ के कथा लिखे में
उनको हाथ दुखाइल।
आखिर कलम धराइल।
बउध देव भगवान,
उनकर कथा अपार
के कर सके वखान ?
कवि का करे कगदही भइया
ओकर कहाँ खेमाटा ?
बसी बनल आदत का अपना
गोदना गोद रहल बा।