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जेठ की दुपहरी / श्वेता राय

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प्रीत तुम्हारी सुधियों में बन हृदय वेदना जगती है

गगन आसरा दे ना पाये
सागर में भी वो न समाये
हाय पीर बिछडन की अब बन नीर नयन से बहती है
प्रीत तुम्हारी सुधियों में बन हृदय वेदना जगती है

हो गया सूना जीवन मेरा
सपनो का अब रहा न डेरा
जाते तेरे पग की ध्वनि अब बन लय धड़कन बजती है
प्रीत तुम्हारी सुधियों में बन हृदय वेदना जगती है

सुन के विरही मन की पुकारें
दर्द की राहें बाँह पसारे
काली नीरव तम भरी रजनी अब बन नागिन डसती है
प्रीत तुम्हारी सुधियों में बन हृदय वेदना जगती है...