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जेठ में जब लू चले / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

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जेठ में जब लू चले
लेटता बूढ़ा कुआँ
नीम की छाया तले

देह मिट्टी से ढकी है
पैर धरती में गड़े
आत्मा के स्वच्छ जल में
नीम के पत्ते पड़े

नीम हो जिस देह में
वायरस कैसे पले

नीम को ये पाँच लोटा
जल चढ़ाता रोज ही
और देवी शीतला को
सर नवाता रोज ही

पूजता हो पेड़ जो
धूप से क्यूँकर जले

शीतला खुद झूलती हैं
नीम पर हर गाँव में
क्यों न हों बच्चे सुरक्षित
खेल ठंडी छाँव में

स्वस्थ हों तन-मन जहाँ
वासना कैसे फले