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जेबों में सन्देशों का अम्बार लगा है / राजेन्द्र गौतम

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जेबों में सन्देशों का
अम्बार लगा है!

रोज़-रोज़ वह टूट रहा है
कितनी किश्तों में
सिग्नल खो जाते हैं जब-जब
मोबाइल रिश्तों में
आकाशी मण्डी में करने
वह व्यापार लगा है!

अब अपने से या अपनों से
भेंट नहीं होती
रात-रात भर बाँची उसने
'चेहरों की पोथी'
आभासी दुनिया में करने
वह प्यार लगा है!

रिश्तों को ऐसा उलझाया
अन्तरजालों में
पहचानें बन्द किए बैठे
अपने तालों में
उँगली के पोरों के नीचे
यह संसार लगा है!