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जेहि देस सिकियो न डोलय / मगही

मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जेहि देस सिकियो<ref>सींक भी</ref> न डोलय<ref>डोलती है</ref> साँप ससरि<ref>रेंगना</ref> गेल हे।
ललना, ओहि<ref>उस</ref> देस गयलन<ref>उनका</ref> दादा रइया<ref>राम पदवीधारी</ref> अँगुरी धरि कवन बरूआ हे॥1॥
पहिले जे मरबो साहिल<ref>साही, खरगोश जितना बड़ा एक जन्तु, जिसका सारा शरीर तेज लम्बे काँटों से ढँका रहता है और जो जमीन में माँद बनाकर रहता है।</ref> काँटा चाहिला<ref>चाहता हूँ</ref> हे।
ललना, तबे हम मरबो मिरिगवा, मिरिगछाल<ref>मृग-चर्म</ref> चाहिला हे।
ललना, तबे हम कटबो परसवा<ref>पलाश, किंशुक नामक वृक्ष</ref> परास डंटा चाहिला हे॥2॥
ललना, तबे हम कटबो मुँजिअबा, मुँजिअ<ref>मूँज की</ref> डोरि चाहिला हे।
ललना, आज मोरा बाबू के जनेउआ, जनेउआ पीला<ref>पीत रंग का</ref> चाहिला हे॥3॥

शब्दार्थ
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