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जेहि बन सीकियो न डोलइ, बाघ गुजरए हे / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जेहि बन सीकियो<ref>सींक भी</ref> न डोलइ,<ref>डोलती है</ref> बाघ गुजरए<ref>गुजरते हैं, चलते-फिरते हैं</ref> हे।
ललना, ताहीतर रोवे सीता सुन्दर, गरभ अलसायल<ref>श्लथ, आलस्ययुक्त</ref> हे॥1॥
रोवथी सीता अछन<ref>अछन-छछन = प्रधीर हो-होकर</ref> सँय, अउरो छछन<ref>प्रधीर हो-होकर</ref> सँय हे।
ललना, के मोरा आगे-पाछे<ref>आगे पीछे। पुत्रोत्पति के समय प्रसूता के आगे-पीछे बैठकर स्त्रियाँ सँभालती हैं।</ref> बइठतन, के<ref>कौन</ref> रे सिखावत<ref>शिक्षा देगी अथवा ढाढ़स बँधायेगी</ref> हे॥2॥
बन में से इकसलन<ref>निकली</ref> बनसपति,<ref>वनदेवी</ref> सीता समुझावल हे।
ललना, सीता हम तोरा आगे-पाछे बइठब, केसिया सँभारब<ref>सँवारूँगी</ref> हे॥3॥
हम देबो सोने के हँसुअवा,<ref>नाल काटने वाला हँसुआ</ref> हमहीं होयवो डगरिन हे॥4॥
आधी रात बीतलइ पहर रात, बबुआ जलम लेल हे।
ललना, जलमल तिरभुवन नाथ, तीनहुँ लोक ठाकुर हे॥5॥
जलम लेहल बाबू अजीधेया त अउरो रजधानी लेत हे।
बाबू जीरवा<ref>जीरा, मसाला</ref> के बोरसी<ref>गोरसी</ref> भरयतूं,<ref>भराती</ref> लौंगिया पासँध देती हे॥6॥
जलमल ओही कुंजन बन अउरो सिरीस बन हे।
बबुआ, कुसवे<ref>कुश ही</ref> ओढ़त<ref>ओढ़ना</ref> कुस बासन<ref>वस्त्र पहनावा</ref> कुसवे के डासन<ref>बिछौना</ref> हे॥7॥
अँचरा फारिय<ref>फाड़कर</ref> के कगजा, कजरा<ref>आँखों का काजल</ref> सियाही भेल हे।
ललना, कुसवे बनइली<ref>बनाई</ref> कलमिया, लोचन<ref>सन्तान के जन्म होने के बाद नापित या कोई अन्य सन्देशवाहक हलदी, दूब, गुड़, अदरख और आम के पल्लव - इन मांगलिक द्रव्यों के साथ जन्म का शुभ संवाद देने के लिए सम्बन्धियांे के यहाँ भेजा जाता है। इसी को ‘लोचन पहुँचावल’ या ‘लोचन भेजल’ कहा जाता है।</ref> पहुँचावहु हे॥8॥
पहिला लोचन रानी कोसिला, दोसर केकइ रानी हे।
ललना तेसर लोचन लहुरा<ref>लाड़ला</ref> देवर, रामहिं जनि जानहि हे॥9॥
चारी चौखंड<ref>चार खण्ड</ref> के पोखरिया, राम दँतवन करे हे।
ललना, जाइ पहुँचल उहाँ<ref>उस जगह</ref> नउआ, त कहि के सुनावल हे॥10॥
कोसिलाजी देलन पाँचों टुक<ref>पाँचों टुक = वस्त्र के पाँच टुकड़, खण्ड स्तोक। धोती, कुर्ता, टोपी, गमछी और चादर, इन पाँचों को ‘पाँचांे टुक’ कहा जाता है।</ref> जोड़वा,<ref>जोड़ा</ref> केकई रानी अभरन हे।
ललना, लछुमन देलन मुंदरिया,<ref>मुद्रिका, अँगूठी</ref> रामजी पटुका<ref>रेशमी वस्त्र</ref> देलन हे॥11॥
कहले सुनल सीता माँफ करिह, अजोधेया चलि आवह हे।
फटतइ<ref>फटती</ref> धरतिया समायब,<ref>समा जाऊँगी, प्रवेश कर जाऊँगी</ref> अजोधेया नहीं आयब हे॥12॥

शब्दार्थ
<references/>