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जैसा दिन बीता है, वैसा गीत लिखा / प्रमोद तिवारी

जैसा दिन बीता है
वैसा गीत लिखा
मैं क्या जानूं
गलत लिखा
या ठीक लिखा

गीतों में आंसू हैं
क्या है मेरा दोष
गीतों में चीखें हैं
फिर भी हूं खामोश
महक रहे हैं गीत
तो समझो हम महके
पक्षी से चहकें
तो समझो हम चहके
जिस दिन स्वर बिगडा
उस दिन संगीत लिखा

अगर कभी सूरज की
आंखें नहीं खुलीं
अगर कभी चंदा से
रातें नहीं धुलीं
अगर दोपहर को
दो रोटी नहीं मिली,
अगर शाम को दिया
रोशनी नहीं जली
उस दिन बरबादी पे
झंडा गीत लिखा