भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जोग माँगै गेलौ, सोहाग माँगे गेलौ / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

दुलहिन सुहाग की अक्षुण्णता के लिए चाची, भाभी आदि के यहाँ जोग माँगने गई है, लेकिन आँखों के काजल तथा शरीर में लिपे हुए चंदन आदि से जोग स्वयं उसे ही लग गया, जिसका उसे पता तक नहीं रहा।

जोग माँगै गेलौं<ref>गई</ref>, सोहाग माँगे गेलौं।
अपना चाची जीके अँगना, सोहाग माँगे गेलौं।
चाची सब सूरत वाली, सोहाग माँगे गेलौं॥1॥
मैं तो क्या जानूँ, जोग कैसा होके लागे।
नैना काजल होके लागे, सीथ<ref>बालों को सँवारकर बनाई हुई रेखा</ref> सिनुर होके लागे।
मैं तो क्या जानूँ, जोग कैसा होके लागे॥2॥
जोग माँगे गेलौं, सोहाग माँगे गेलौं।
अपना भौजी के अँगना, सोहाग माँगे गेलौं।
भौजी सब सूरत वाली, सोहाग माँगे गेलौं॥3॥
मैं तो क्या जानूँ, जोग कैसा होके लागै।
अगर चन्नन होके लागै, नैना काजर होके लागे।
मैं तो क्या जानूँ, जोग कैसा होके लागै॥4॥

शब्दार्थ
<references/>