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जो इलाज और कोई न कर सका / सुरेश चन्द्र शौक़

जो इलाज और कोई न कर सका, हमने किया

अपने ही दर्द को ख़ुद अपनी दवा, हमने किया


अपनी फ़ितरत थी कि हर हाल में ख़ुशहाल रहे

ग़म भी पाया तो उसे नग़्मासरा हमने किया


उम्र भर दिल ने हमें कुछ ना दिया ग़म के सिवा

उम्र भर फिर भी मगर दिल का कहा हमने किया


कुछ ही आँखों के सही अश्क़ तो पोंछे हमने

जीने का थोड़ा बहुत हक़ तो अदा हमने किया


अपनी आदत थी कि जो बात कही मुँह पे कही

जाने इस बात से कितनों को ख़फ़ा हमने किया


एक ख़ूबी यही बख़्शी थी ख़ुदा ने हमको

जीते जी ‘शौक़’! किसी का न बुरा हमने किया