जो कि ज़ालिम है वो हरगिज़ फूलता-फलता नहीं
सब्ज़ होते खेत देखा है कभी शमशीर का
सीमो-ज़र के आगे ’सौदा’ कुछ नहीं इन्साँ की क़द्र
ख़ाक ही रहना भला था बल्कि इस अकसीर का
जो कि ज़ालिम है वो हरगिज़ फूलता-फलता नहीं
सब्ज़ होते खेत देखा है कभी शमशीर का
सीमो-ज़र के आगे ’सौदा’ कुछ नहीं इन्साँ की क़द्र
ख़ाक ही रहना भला था बल्कि इस अकसीर का