भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो कोई भक्ति किया चहे भाई / धरनीदास

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:32, 24 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=धरनीदास |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatBhajan}} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो कोई भक्ति किया चहे भाई।
करि बैराग भसम करि गोला, सो तन मनहिं चढ़ाई।
ओढ़ के बैठ अधिनता चादर, तज अभिमान बड़ाई।
प्रेम प्रतीत धरै इक तागा, सो रहै सुरत लगाई।
गगन मंडल बिच अभरन झलकत, क्यों न सुरत मनलाई।
सेस सहस मुख निसु दिन बरनत, बेद कोटि गुन गाई।
सिव सनकादि आदि ब्रह्मादिक, ढूंढत थाह न पाई।
नानक नाम कबीर मता है, सो मोहि प्रगट जनाई।
धु्रव प्रहलाद यही रस मातें, सिव रहै ताड़ी लाई।
गुरू की सेवा साध की संगत, निसुदिन बढ़त सवाई।
दूलनदास नाम भज बंदे, ठाढ़ काल पछिताई।