जो ख़ुद कुशी के बहाने तलाश करते हैं
वो नामुराद बहुत ज़िन्दगी से डरते हैं
मेरा मकान पुरानी सराय जैसा है
कई थके हुए राही यहाँ ठहरते हैं
ये बात दर्ज़ है इतिहास की किताबों में
कि बादशाहों की ख़ातिर सिपाही मरते हैं
वो टूटते हैं मगर क़हक़हा लगाते हुए
कि बुलबुले कहाँ अपनी क़ज़ा से डरते हैं
खड़ा हुआ है अँधेरे में तू दिया लेकर
तेरे वजूद का सब एहतराम करते हैं