भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो चले, वे ही आगे बढ़े / शिवराम

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:01, 17 सितम्बर 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शिवराम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जुए के तले ही सही
जो चले
वे ही आगे बढ़े
जिनकी गर्दन पर भार होता है
उनके ह्रदय में ही क्षोभ होता है
कैद होते हैं जिनके अरमान
वे ही देखते हैं मुक्ति के स्वप्न
जो स्वप्न देखते हैं
वे ही लड़ते हैं
जो लड़ते हैं
वे ही आगे बढ़ते हैं
जो खूँटों से बँधे रहे
बँधे के बँधे रह गये
जो अपनी जगह अड़े रहे
अड़े के अड़े रह गये।