भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जो ज़बाँ से लगती है वो कभी नहीं जाती / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='अना' क़ासमी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> जो ज़बाँ से लगत…)
 
 
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
दर्द भी नहीं जाता, चोट भी नहीं जाती
 
दर्द भी नहीं जाता, चोट भी नहीं जाती
  
गर तलब हो सादिक़ तो ख़र्च-वर्च कर डालो
+
गर तलब हो सादिक़<ref>सच्ची </ref> तो ख़र्च-वर्च कर डालो
मुफ़्त की शराबों से तिश्नगी नहीं जाती
+
मुफ़्त की शराबों से तिश्नगी<ref>प्यास </ref> नहीं जाती
  
 
अब भी उसके रस्ते में दिल धड़कने लगता है
 
अब भी उसके रस्ते में दिल धड़कने लगता है
पंक्ति 18: पंक्ति 18:
 
और ये मुहब्बत ही तुमसे की नहीं जाती
 
और ये मुहब्बत ही तुमसे की नहीं जाती
  
तर्के-मय को ऐ वाइज़ तू न कुछ समझ लेना
+
तर्के-मय<ref>शराब छोडना </ref> को ऐ वाइज़<ref>मौलाना </ref> तू न कुछ समझ लेना
 
इतनी पी चुका हूँ के और पी नहीं जाती
 
इतनी पी चुका हूँ के और पी नहीं जाती
  
पंक्ति 25: पंक्ति 25:
  
 
नाव को किनारा तो वो ख़ुदा ही बख़्शेगा
 
नाव को किनारा तो वो ख़ुदा ही बख़्शेगा
फिर भी नाख़ुदाओं की बंदगी नहीं जाती
+
फिर भी नाख़ुदाओं<ref>मल्लाह </ref> की बंदगी नहीं जाती
  
 
शेरो शायरी क्या है सब उसी का चक्कर है
 
शेरो शायरी क्या है सब उसी का चक्कर है
पंक्ति 36: पंक्ति 36:
 
जिन हुदूद के आगे शायरी नहीं जाती  
 
जिन हुदूद के आगे शायरी नहीं जाती  
 
</poem>
 
</poem>
 +
{{KKMeaning}}

19:52, 26 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

जो ज़बाँ से लगती है वो कभी नहीं जाती
दर्द भी नहीं जाता, चोट भी नहीं जाती

गर तलब हो सादिक़<ref>सच्ची </ref> तो ख़र्च-वर्च कर डालो
मुफ़्त की शराबों से तिश्नगी<ref>प्यास </ref> नहीं जाती

अब भी उसके रस्ते में दिल धड़कने लगता है
हौसला तो करता हूँ बुज़दिली नहीं जाती

कुछ नहीं है दुनिया में इक सिवा मुहब्बत के
और ये मुहब्बत ही तुमसे की नहीं जाती

तर्के-मय<ref>शराब छोडना </ref> को ऐ वाइज़<ref>मौलाना </ref> तू न कुछ समझ लेना
इतनी पी चुका हूँ के और पी नहीं जाती

शाख़ पर लगा है गर उसका क्या बिगड़ना है
फूल सूँघ लेने से ताज़गी नहीं जाती

नाव को किनारा तो वो ख़ुदा ही बख़्शेगा
फिर भी नाख़ुदाओं<ref>मल्लाह </ref> की बंदगी नहीं जाती

शेरो शायरी क्या है सब उसी का चक्कर है
वो कसक जो सीने से आज भी नहीं जाती

उसको देखना है तो दिल की खिड़कियाँ खोलो
बंद हों दरीचे तो रौशनी नहीं जाती

तेरी जुस्तजू में अब उसके आगे जाना है
जिन हुदूद के आगे शायरी नहीं जाती

शब्दार्थ
<references/>