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"जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर

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जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है  
 
जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है  

03:45, 4 जुलाई 2011 के समय का अवतरण

जो जीवन की धूल चाट कर बड़ा हुआ है
तूफ़ानों से लड़ा और फिर खड़ा हुआ है
जिसने सोने को खोदा लोहा मोड़ा है
जो रवि के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा
 
जो जीवन की आग जला कर आग बना है
फौलादी पंजे फैलाए नाग बना है
जिसने शोषण को तोड़ा शासन मोड़ा है
जो युग के रथ का घोड़ा है
वह जन मारे नहीं मरेगा
नहीं मरेगा