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जो नमक का है ज्वार भाटों का है / संजय कुमार शांडिल्य

तुम उस समुद्र को जानती हो जो नमक का है
ज्वार-भाटों का है
वडवानल का है
तुम उसमें रहती हो
तुम उस कुएँ को जानती हो
जिसमें नमक के और मुसाफ़िर
रहते हैं
जिससे सिर्फ़ आवाज़ें लौटती है
समुद्र भी एक बड़ा कुआँ है
फ़र्क सिर्फ़ नमक का है
तुम समुद्र में हो
मैं हूँ कुएँ में
सुनो इस आग़ की आवाज़ सुनो
पानी की वासना के नीचे
कुएँ और समुद्र से आती है
आग़ की आवाज़

जहाँ पृथ्वी निर्वसना है
बस इस कुएँ और उस समुद्र में
सिर्फ़ नमक का फ़र्क है
जो नमक का है ज्वार-भाटों का है I