भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जो नहीं हासिल / संजीव वर्मा ‘सलिल’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जो नहीं हासिल वही सब
चाहिए

जब किया कम काम ज्यादा दाम पाया
या हुए बदनाम या यश नाम पाया
भाग्य कुछ अनुकूल थोड़ा वाम पाया
जो नहीं भाया वही अब
चाहिए

चैन पाकर मन हुआ बेचैन ज्यादा
वजीरों पर हुआ हावी चतुर प्यादा
किया लेकिन निभाया ही नहीं वादा
पात्र जो जिसका वही कब
चाहिए

सगे सत्ता के रहे हैं भाट-चारण
संकटों का कंटकों का कर निवारण
दूर कर दे विफलता के सफल कारण
बंद मुट्ठी में वही रब
चाहिए

कहीं पंडा कहीं झंडा कहीं डंडा
जोश तो है गरम लेकिन होश ठंडा
गैस मँहगी हो गयी तो जला कंडा
पाठ-पूजा तज वही पब
चाहिए

बिम्ब ने प्रतिबिम्ब से कर लिया झगड़ा
मलिनता ने धवलता को 'सलिल' रगडा
शनिश्चर कमजोर मंगल पड़ा तगड़ा
दस्यु के मन में छिपा नब
चाहिए