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"जो न होना था हुआ / केदारनाथ अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
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न लौकिक ऊँट को नाथ पाए- | न लौकिक ऊँट को नाथ पाए- | ||
न चोटी पर चढ़ा पाए- | न चोटी पर चढ़ा पाए- |
13:45, 16 जनवरी 2011 का अवतरण
जो न होना था, हुआ;
हुआ जो यह हुआ-
अनजाना हुआ।
अब जो आए,
नए आए,
अलौकिक का
नया संस्करण लाए,
मंत्र मारते,
झूमते-झामते-
इतराए।
लौकिक ऊँट की नाक
अलौकिक की नकेल से
नाथने आए;
ऊँट को चोटी पर चढ़ाने आए,
न पाई उँचाई को पाने आए,
न लौकिक ऊँट को नाथ पाए-
न चोटी पर चढ़ा पाए-
न चढ़ पाए-
न निदान समझ पाए-
विह्वल बिलबिलाए।
रचनाकाल: ०३-०८-१९९१