Last modified on 25 जून 2019, at 23:41

जो पत्थर दिल भी गुज़रेगा उधर से / अलका मिश्रा

जो पत्थर दिल भी गुज़रेगा उधर से
पिघल जाएगा उसकी इक नज़र से

कशिश उसमें कोई तो है यक़ीनन
मुझे निस्बत है क्यों उसके ही दर से

सभी नज़रें उसी जानिब लगी हैं
मेरा महबूब गुज़रा है जिधर से

वो कैसे पार कर पाएगा दरिया
जो माझी डर गया हो इक लहर से

रहें ख़ामोश हम कब तक बताओ
गुज़र जाने को है पानी भी सर से