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जो बादल आसमाँ के थे नदी के हो नहीं पाए / अशोक रावत

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जो बादल आसमाँ के थे नदी के हो नहीं पाए,
तुम्हारे बाद जैसे हम किसी के हो नहीं पाए.

हमारा आख़िरी मक़सद अँधेरों से उलझना था,
कभी हम इसलिए भी रौशनी के हो नहीं हो पाए.

ग़मों के साथ कुछ रिश्ता ही उनका इस तरह का था,
मेरे आँसू पलट के फिर ख़ुशी के हो नहीं पाए.

बना के रख नहीं पाए बहुत दिन ज़िंदगी से हम ,
रहे तो साथ लेकिन ज़िंदगी के हो नहीं पाए.

किसी की दुश्मनी भी फिर उन्हें क्या रास आनी थी,
कि दिल से जो किसी की दोस्ती के हो नहीं पाए.

कभी लफ़्ज़ों ने बहकाया, कभी छंदों ने भरमाया,
सभी एहसास दिल के शायरी के हो नहीं पाए.

सुदर्शन चक्र उनके हाथ में इक बार जब आया,
कभी फिर नन्द नन्दन बाँसुरी के हो नहीं पाए,