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जो भी अपनी गांठे ज़्यादा बाँधेगा कम खोलेगा / विनय कुमार

जो भी अपनी गांठे ज़्यादा बाँधेगा कम खोलेगा।
कुरूक्षेत्र में धर्मराज सा आधा ही सच बोलेगा।

अगर झील में झांक रहे हो तो पानी को मत छेड़ो
दुख होगा जब तेरा चेहरा भी पानी सा डोलेगा।

यह उत्तर आधुनिक ष्वान है, सीमित निष्ठा रखता है
कार निकालेगा जब मालिक साथ हुलसकर हो लेगा।

सस्ता गुड़ ले लेगा मिसरी देने का वादा कर के
लेकिन यह सौदागर मिसरी को शर्बत में घोलेगा।

इस जंगल में एक तराज़ू मालिक जिसका बंदर है
झगड़ोगे तो बंदर रोटी अपने हक़ में तोलेगा।

शक्कर ढोती हुईं चींटियां उसे घिनौनी लगती हैं
लेकिन उनको शक्कर की खातिर पलकों पर ढो लेगा।

सभी बरी हो जाएँगे सूरज की खुली अदालत में
हर मुज़रिम कल सुबह धूप की बारिश में मुंह धो लेगा।

दिन भर कागज़ से खेलेगा मरहम देगा और रात गये
और सितम, बिजली गुल कर देगा फिर ज़ख्म टटोलेगा।

सेंध मारने के सारे औज़ार बेचकर आए हैं
चोर जानते हैं कपाट कोई भीतर से खोलेगा।

सुविधा का यह सागर छीन रहा है नींदों के टापू
तुझे वहम है तू इन आवारा लहरों पर सो लेगा।