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जो मेरी छत का रस्ता चाँद ने देखा नही होता / चित्रांश खरे

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जो मेरी छत का रस्ता चाँद ने देखा नही होता
तो शायद चाँदनी लेकर यहाँ उतरा नही होता

दुआयें दो तुम्हे मशहूर हमने कर दिया वरना
नजर अंदाज कर देते तो ये जलवा नहीं होता

अभी तो और भी मौसम पडे़ है मेरे साये में
मैं बरगद का शजर हूँ मुद्दतों बूढा नही होता

हसीनों से तमन्नाये वफा कमजर्फ रखते हैं
ये एैसा ख्वाब है जो उम्र भर पूरा नही होता

बड़े अहसान हैं मुझपर तेरी मासूम यादों के
मैं तनहा रास्तो मैं भी कभी तनहा नही होता

मैं जब-जब शेर की गहराइयो में डुब जाता हूँ
सिवा तेरे मेरे दिल में कोई चेहरा नही होता