Last modified on 10 नवम्बर 2009, at 00:19

जो मेरी सरगुज़िश्त सुनते हैं / आरज़ू लखनवी

जो मेरी सरगुज़िश्त सुनते हैं।
सर को दो-दो पहर यह धुनते हैं॥

कै़द में माजरा-ए-तनहाई।
आप कहते हैं, आप सुनते हैं॥

झूठे वादों का भी यकीन आ जाये।
कुछ वो इन तेवरों से कहते हैं॥