जो ये चाँदतारों को नींद आ रहीहै,
कहीं ग़म के मारों को नींद आ रही है।
बयाँवा में खुलकर खिजाँ खेलती है,
चमन में बहारों को नींद आ रही है।
न वादा किया आज तक कोई पूरा,
यहाँ इन्तज़ारों को नींद आ रही है।
परेशान क्यों हो रहे ‘रंग’ नाहक,
तुम्हीं क्या हज़ारों को नींद आ रही है।