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जो ये नहीं तो भला लुत्फ़-ए-आश्नाई क्या / सफ़ी औरंगाबादी

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जो ये नहीं तो भला लुत्फ़-ए-आश्नाई क्या
मज़े की चीज़ है या रब ग़म-ए-जुदाई क्या

तू अपने अक्स से भी बच तो हम करें तस्लीम
इधर तो देख की ख़ुद-बीं ये ख़ुद-नुमाई क्या

किसी से हसरत-ए-दीदार तो छुपा न सके
ये देखना है कि देात है अब दिखाई क्या

इसी अदा-ए-तग़ाफुल पे जान देता हूँ
मलाल बढ़ गया उन से हुई सफ़ाई क्या

लिया था मशविरा तुम ने जो ऐ ‘सफ़ी’ हम से
है ज़ेर-ए-ग़ौर अभी तक वो कारवाई क्या